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rigved-33-slok-1- : ऋग्वेद 33 श्लोक 1-

ऋषि :- हिरण्यस्तूप अंगीरस देवता :- इंद्र छंद :- त्रिपुस्ट ऋग्वेद अध्याय 33 श्लोक 1 एतायामोप गंतब्य इंद्रम्समांक सु परमर्ति वावुधाती | अनामृन : कुविदादस्य रायों गवां केतम प्रमाव्रजते न || अर्थ :- गौवो क़ो प्राप्त करने की कामना से लोग इंद्रदेव के पास जाये,ये अपराजेय इंद्रदेव गोरुप धनो क़ो बढ़ाने की उत्तम बुद्धि देंगे,वे गोवों क़ो प्राप्त करने का उत्तम उपाय बताएंगे ऋग्वेद अध्याय 33 श्लोक 2 अन्नानाही पर्वते श्रीयणाम त्वस्टा असमय वज्र स्वयऱ ततक्ष | वाश्रा ईव धनेव स्यान्दमाना अब्ज समुद्रमव जगमुराप || अर्थ :- इंद्रदेव के लिए त्वष्टादेव नें वज्र का निर्माण किया,उसी से इंद्रदेव नें मेघो क़ो विदीर्न कर जल बरसाया,रम्भति हुई गोवें के समान वेगा से उसी प्रकार आगे बाढ़ गये, ऋग्वेद अध्याय 33 श्लोक 3 वृषायमानों वर्णित सोमम त्रिकदवेकेशवपीबत्सुतस्य | आ सायकम मघवादत्त वज्रर्महनेन प्रथमजामहीणाम || अर्थ :- अतिबलशाली इंद्रदेव नें सोम क़ो ग्रहण किया,यज्ञ मे तीन विशिष्ट पात्रों मे विभस्व किये हुए सोम क़ो पान किया,ऐश्वर्यवान इंद्रदेव नें मेघो मे सबसे प्रमुख मेघ क़ो विदिर्न किया, ऋग्वेद अध्याय 34 श्लोक 4 वधीहीँ दस्यू धनि...

ऋग्वेद मंडल -8, श्लोक -10

एवा हास्य काम्या स्तोम उकथं च शंस्या | इंद्राये सोमपितये : || अर्थ :- दाता की स्तुतिया एवं उक्त वचन अति मनोरम व प्रश्नसनीय है, ये सब सोमरस पान करने वाले इंद्रदेव के लिए है |

ऋग्वेद ll 9 ll

कवि नो मित्रवारुणा तुविजाता उरुक्षया | दक्ष दधाते उपसम || अर्थ :- अनेक कर्मो को सम्पन्न करने वाले विवेकशील वरुण देव एवं अनेक स्थानों मे निवास करने वाले मित्र हमारी क्षमताओ और कार्यों को पुष्ट करते है,

ऋग्वेद श्लोक ll 7 ll

मित्र हुवे पुतदक्षम् वरुण च रिसादशम|  घिएम घृताची || ऋग्वेद 7 || अर्थ :- घृत के समान प्रानपद वृष्टि सम्पन्न कराने वाले आपके मित्र, वरुण देव का भी हम आह्वाहन करते है, मित्र हमें बलशाली बनाये, व वरुण देव हमारे हिंसक शत्रुवो का नाश करे,

ऋग्वेद श्लोक || 2 ||

वाय उक्वरांथेभिजारन्ते त्वम्क्षा जरिजार: | सुतसोमा अहविरद : || ऋग्वेद 2 || अर्थ :- हे वायुदेव, सोमरस को आपके लिए तैयार करने वाले, एवं आपकी स्तुति मे स्तोत्र पढ़ने वाले, आपकी उत्तम तरीके से स्तुति करते है,

ऋग्वेद ll 1 ll

वायमा याही दर्शतेमे सोमा अरनकृता : | तेषा पाही श्रुधी हवम || ऋग्वेद 1 || अर्थ :- हे प्रियदर्शी वायुदेव, हमारी प्रार्थना सुनकर यज्ञस्थल पर आये, और आपके निमित्त सोमरस उपलब्ध है, जिसका  पान करे, || ऋग्वेद 1 ||